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क्षणभंगुर

मॉनसून आगमन के साथ सजती हुई धरती मानो कह रही हो ,अब तो अपनी ज़िद छोड़ो देखो ग्रीष्मऋतु के  पेड़ो ने भी अपने गिराए हुए पत्तों को फिर से पा लिया , अपने पत्ते रूपी पर खोलकर वह् भी आकाश मे उड़ जाना चाहते है।उस गुलाब कि खिली हुई पंखुड़ियाँ को तो देखो कैसे खिल खिलाकर हंसती हुई अपने सभी रंगों से अपने होने का अहसास करा रही हैं। हरी- हरी  घास के बीचोंबीच पंक्तियॉ में खिले हुए पीले सफ़ेद लिली मैदान कि शोभा बढ़ाने को आतुर लगते है। जाने वाले गर्मी के साथ आम के पेड़ों से वर्षा कि बूंदो के साथ चलने वाले आन्धियो के संग लगातर  पके हुए आम गिरते है। अनार बेर और कदम के पेड़ों में कलियां लगती हैं जो वर्षा ऋतु के अंत में फल  बनने को आतुर रहेंगी। जिन पेड़ो ने बसंत ऋतू में अपनी कलियाँ खिलाई थी,वर्षा ऋतू मे उनके फल अन्धियो के थपेड़ो के साथ झूम झूम कर गिर जाते है।अब वर्षा ऋतू मे कुछ नई कलियाँ खिलेंगी कुछ नए फूलो से कुछ  वृक्ष लद्द् जायँगे,कुछ नए नियमो को अपना लेंगे,कुछ पुराने नियमो का त्याग करके आगे बढ़ जायँगे ,आने वाली शीत ऋतू में फिर कुछ नया रंग पृथ्वी का होगा ,वो प्रतिपल् बदलेंगी ,प्रतिपल् विश्राम लेगी फिर आगे ब